हाल ही में, आयुषी सारस्वत, जो वित्तीय STARTUP FinFlow की सह-संस्थापक हैं, ने LinkedIn पर एक दिलचस्प चर्चा शुरू की। इसने कॉर्पोरेट कल्चर और काम के प्रति लोगों की सोच पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने बड़े ब्रांड्स और STARTUPS में काम करने के प्रति लोगों के नजरिए में जो अंतर है, उसे उजागर किया।
आयुषी ने लिखा कि जब कोई व्यक्ति ₹6.5 लाख सालाना कमाने वाली एक बहुराष्ट्रीय कंपनी (MNC) में देर रात तक काम करता है, तो इसे ‘Work hard’ और ‘Corporate experience’ माना जाता है। लेकिन वहीं, अगर कोई STARTUP ₹15 लाख सालाना की सैलरी पर किसी कर्मचारी से 10 घंटे काम करवाता है, तो इसे तुरंत ‘Toxic workplace’ का लेबल दे दिया जाता है। ये फर्क क्यों है, आपको नहीं लगता?
STARTUPS में काम का माहौल:
STARTUPS का नाम सुनते ही जो पहली बात दिमाग में आती है, वो है ‘josh’ और ‘energy’। यहाँ काम का माहौल बहुत ही तेजी से बदलता है। एक ही कर्मचारी को कई ज़िम्मेदारियाँ निभानी होती हैं। मल्टी-टास्किंग, समय पर डिलीवरी और नए प्रयोग करना यहाँ आम बात है। STARTUPS में काम करना सिर्फ एक नौकरी नहीं, बल्कि एक मिशन का हिस्सा बनना है। यहाँ कर्मचारी अपने काम का सीधा असर देख सकते हैं।
संभावनाएँ और चुनौतियाँ:
शुरुआती दौर में संसाधनों की कमी की वजह से कर्मचारियों को लंबी शिफ्ट में काम करना पड़ता है। लेकिन इस मेहनत का एक बड़ा फायदा यह है कि यहाँ सीखने और ग्रोथ की अनलिमिटेड संभावनाएँ होती हैं। हर दिन एक नई चुनौती मिलती है, और ये अनुभव आगे चलकर उनके करियर में महत्वपूर्ण साबित होते हैं।
BIG COMPANIES (MNCs) में काम का माहौल:
अब बात करें BIG COMPANIES की। ये COMPANIES अपने स्थापित प्रक्रियाओं और संरचित कार्यप्रणाली के लिए जानी जाती हैं। यहाँ काम के घंटे और ज़िम्मेदारियाँ बिलकुल स्पष्ट होती हैं। अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं के साथ, ग्रोथ धीमी लेकिन स्थिर होती है।
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BIG COMPANIES में काम करने से समाज में एक प्रतिष्ठा बनती है। लोगों की धारणा होती है कि यहाँ काम करना सुरक्षा और स्थिरता का प्रतीक है।
महसूस होने वाला अंतर:
तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि STARTUPS में 10 घंटे काम करना ‘Toxic’ क्यों और MNC में 12 घंटे काम करना ‘Dedication’ क्यों है? इसका मुख्य कारण है BRAND VALUE और SOCIAL PERCEPTION। लोग बड़े नामों के साथ काम करना कुछ खास समझते हैं, जबकि STARTUPS को अक्सर संघर्ष और अनिश्चितता से जोड़ा जाता है।

मूल कारण क्या हैं?
- BRAND VALUE का आकर्षण:
बड़े Brands जैसे TCS, Infosys, Google आदि में काम करने का आकर्षण लोगों को खींचता है। इन COMPANIES का नाम खुद में एक पहचान बन जाता है, जिससे नौकरी करने वाले व्यक्ति को सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है।
- अनिश्चितता का डर:
STARTUPS में अनिश्चितता का माहौल बना रहता है। फंडिंग, मार्केट की प्रतिस्पर्धा, और बिजनेस मॉडल की स्थिरता पर हमेशा सवाल होते हैं।
- SOCIAL PERCEPTION:
समाज में बड़े Brands में काम करने वालों को अधिक सम्मान दिया जाता है। जैसे ही कोई कहता है कि वह ‘Microsoft‘ में काम करता है,” तो लोगों की धारणा अपने आप सकारात्मक हो जाती है।
- सीखने के अवसर:
STARTUPS में एक व्यक्ति को कई जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं। यह तेजी से विकास का मौका देता है, लेकिन लोग इसे संघर्ष की तरह देखते हैं।
- वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी:
अक्सर STARTUPS में Work-life balance नज़रअंदाज़ होता है। काम के घंटे तय नहीं होते और कई बार रात-दिन काम करना पड़ता है। इसके विपरीत, BIG COMPANIES इस पर ध्यान देती हैं।
समाधान: एक नई सोच की ओर
आज की दुनिया में, चाहे वो कोई बड़ा Brand हो या एक चमकता हुआ STARTUPS, असली पहचान वो काम है जो हम करते हैं। बस किसी बड़े नाम से जुड़ने से हमारी काबिलियत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। असली फर्क हमारी मेहनत, सीखने की जिज्ञासा, और अपने काम के प्रति ईमानदारी से ही आता है। चलिए, इन बातों को थोड़ा और गहराई से समझते हैं:
1. काम के प्रति सोच बदलने की जरूरत है:
कई बार, हम काम को बस एक ‘job’ की तरह लेते हैं—सुबह ऑफिस, फिर काम, और फिर घर। लेकिन सच्चाई तो ये है कि काम एक बेहतरीन मौका है खुद को बेहतर बनाने का, नई स्किल्स सीखने का, और अपने जीवन में कुछ खास कर दिखाने का। चाहे वो बड़े BRANDS हो या STARTUPS, अगर हम ये सोच लें कि हर दिन कुछ नया सीखना है, तो यकीन मानिए, हमारी ग्रोथ खुद-ब-खुद होने लगेगी।
उदाहरण के लिए: सोचिए, Startups में काम करने वाला शख्स रोज़ नई चुनौतियों का सामना करता है—कभी मार्केटिंग में हाथ आजमाता है, कभी क्लाइंट्स के साथ बात करता है। यही अनुभव उसे कुछ साल बाद एक बेहतरीन लीडर बनने में मदद करता है। अगर वो सिर्फ नाम के पीछे दौड़ता, तो शायद ये अनुभव उसे न मिलता।
2. मेहनत को BRAND नाम से नहीं, उसके परिणामों से मापा जाए:
आजकल ये सोच आम हो गई है कि अगर आप किसी बड़े Brand में काम कर रहे हैं, तो आप सफल हैं। लेकिन, क्या ये सच में सफलता का सही पैमाना है? असल में, आपकी मेहनत के परिणाम ही आपकी पहचान बनाते हैं।
उदाहरण के लिए: कल्पना कीजिए कि Startups में एक डेवलपर ने ऐसी ऐप बनाई, जिसने मार्केट में धूम मचा दी। कंपनी भले ही छोटी हो, लेकिन उस व्यक्ति का काम बोलता है। वहीं, अगर आप किसी बड़े brand में काम करते हुए अपनी मेहनत किसी फाइल के नीचे दबा देते हैं, तो वो क्या फायदा?
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3. STARTUPS को भी कर्मचारियों के प्रति अधिक पारदर्शिता और वर्क-लाइफ बैलेंस पर ध्यान देना चाहिए:
STARTUPS में अक्सर देखा जाता है कि लोग दिन-रात काम में जुटे रहते हैं। डेडलाइन्स, फंडिंग की चिंता, और मार्केट की प्रतिस्पर्धा के बीच Work-life balance कहीं खो जाता है। अगर STARTUPS पारदर्शिता और संतुलन बनाए रखें, तो माहौल और भी बेहतर हो सकता है।
उदाहरण के लिए: अगर STARTUPS अपने कर्मचारियों को यह बताएं कि Company का विज़न क्या है, क्या रिस्क हैं, और कैसे वो इसमें योगदान दे सकते हैं, तो विश्वास का रिश्ता मजबूत होता है। और अगर सप्ताह में एक दिन ‘work from home’ या ‘flexible working hours’ का विकल्प दिया जाए, तो कर्मचारियों की productivity और खुशी दोनों बढ़ती हैं।
4. MNCs को भी लचीलापन और क्रिएटिविटी के अवसर देने की दिशा में प्रयास करने चाहिए:
बड़े Brands में काम करने का मतलब ये नहीं है कि हर दिन एक ही रूटीन दोहराना पड़े। इन्हें भी अपने कर्मचारियों को नए आइडियाज पर काम करने का मौका देना चाहिए और उन्हें एक फ्लेक्सिबल वर्किंग कल्चर प्रदान करना चाहिए।
उदाहरण के तौर पर: Google का ‘20% project rule‘ एक बेहतरीन उदाहरण है, जहाँ कर्मचारियों को अपने काम के 20% समय में अपने पसंदीदा इनोवेटिव प्रोजेक्ट्स पर काम करने का मौका दिया जाता है। इसी से Gmail और Google Maps जैसे शानदार इनोवेशन निकले। अगर दूसरी MNCs भी ऐसा करें, तो काम का माहौल और भी मजेदार हो सकता है।
‘20% Project rule‘ का मतलब है कि आपकी कुल वर्किंग टाइम का 20% हिस्सा—मतलब हफ्ते में एक दिन—आप अपनी रोज़मर्रा की जिम्मेदारियों से हटकर किसी भी नए आइडिया या इनोवेटिव प्रोजेक्ट पर कर सकते हैं। इससे आपको эксперимент करने, अपने पैशन प्रोजेक्ट्स पर काम करने और कंपनी के लिए नए प्रोडक्ट या फीचर का कॉन्सेप्ट तैयार करने का मौका मिलता है—वही दिन जब आप बॉस के टास्क लिस्ट से आज़ाद होकर अपनी क्रिएटिविटी उड़ान भर सकते हैं।
बड़े नाम का जादू:
देखिए, जब कोई बड़ी MNC अपने कर्मचारियों से रात-रातभर काम करवाती है, छुट्टियाँ रद्द करवाई जाती हैं, और पारिवारिक समारोह भी छोड़ने के लिए कहे जाते हैं—यहाँ तक कि अंतिम संस्कार के वक्त भी ईमेल चेक करने की उम्मीद रहती है, तो इसे सब ‘CAREER BUILDING’ का नाम दे देते हैं। अजीब है, है ना? लोग इसे अपने विजिटिंग कार्ड पर बड़े-बड़े नामों के साथ दिखाना पसंद करते हैं। जैसे ही CV में Deloitte, EY, या KPMG का नाम आता है, लोगों की नजरें चमक उठती हैं। लेकिन वही अगर किसी छोटे भारतीय STARTUPs में हो, तो लोग इसे ‘Exploitation’ कहने में देर नहीं लगाते।
तो, ‘CAREER BUILDING’ का असल मतलब क्या है?
सादगी से कहें, ‘CAREER BUILDING’ का मतलब है अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए एक मजबूत और सफल पेशेवर जिंदगी की नींव रखना। जैसे एक मजबूत इमारत के लिए सही योजना, अच्छे मटेरियल, और कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है, वैसे ही एक अच्छा करियर बनाने के लिए सही शिक्षा, अनुभव, और सही लोगों से जुड़ने की ज़रूरत होती है।
जब हम करियर बनाना शुरू करते हैं, तो यह एक लंबी यात्रा की तरह होता है, जिसमें हर कदम हमें आगे बढ़ाता है। इसमें कई चीजें शामिल होती हैं, जैसे:
- शिक्षा और प्रशिक्षण – पहला कदम तो यही है। अगर किसी को डॉक्टर बनना है, तो उसे मेडिकल की पढ़ाई करनी होगी। और अगर इंजीनियर बनना है, तो इंजीनियरिंग का कोर्स तो करना ही पड़ेगा।
- नेटवर्किंग – इसका मतलब है उन लोगों से मिलना जो आपके फील्ड में काम कर रहे हैं। इससे नए मौके मिल सकते हैं और आपको इंडस्ट्री की अच्छी जानकारी भी मिलती है।
- अनुभव प्राप्त करना – सिर्फ पढ़ाई करना ही काफी नहीं है। असली सीख तो काम करने से मिलती है। जैसे इंटर्नशिप, पार्ट-टाइम जॉब, या वर्कशॉप में भाग लेना। इससे आपको काम करने का तरीका समझ में आता है।
- लक्ष्य निर्धारण – अपने करियर में यह जानना जरूरी है कि आपको क्या बनना है और कैसे बनना है। छोटे-छोटे लक्ष्य बनाकर धीरे-धीरे उन तक पहुंचने का प्रयास करें।
- सेल्फ-इम्प्रूवमेंट – दुनिया तेजी से बदल रही है। नए-नए स्किल्स आते जा रहे हैं। अगर आपको आगे बढ़ना है, तो खुद को अपडेट रखना चाहिए। नई टेक्नोलॉजी सीखनी होगी, नई चीजों को अपनाना होगा।
- लंबी अवधि की योजना – अगर आपको मैनेजर बनना है, बिजनेस करना है, या किसी खास क्षेत्र में एक्सपर्ट बनना है, तो इसकी तैयारी अभी से करनी होगी।
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उदाहरण के लिए: मान लीजिए, राम एक इंजीनियर बनना चाहता है। तो सबसे पहले वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई करेगा। पढ़ाई के दौरान, वह इंटर्नशिप करेगा ताकि असली काम का अनुभव मिले। फिर, सीनियर्स और अच्छे लोगों से मिले ताकि नई जानकारी और मौके मिलें। धीरे-धीरे, वह अपने काम में एक्सपर्ट बनता जाएगा और एक दिन किसी बड़ी कंपनी में मैनेजर बन सकता है। यही है ‘CAREER BUILDING’ – एक-एक कदम चलकर अपने सपनों तक पहुंचना।
निष्कर्ष:
किसी भी Company का नाम चाहे बड़ा हो या छोटा, मेहनत की असली कद्र तब होती है जब आप काम के साथ कुछ सीखते हैं। सिर्फ बड़े BRAND के नाम पर खुद को थकाना तो कोई समझदारी नहीं। असली ग्रोथ वहीं है जहाँ आपको मौके मिलें, आपकी मेहनत को पहचाना जाए, और सीखने का असली अनुभव मिले।
क्या हमें अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है? शायद हमें ये समझना होगा कि बड़ा BRAND ही हमेशा बेहतर नहीं होता। असली काबिलियत तो उस जगह से आती है जहाँ आप काम के हर पहलू को समझते हैं, चाहे वह STARTUPs हो या बड़ा Brand।